नाबालिग कर रहे दुकानों व होटलों पर काम,उड़ रही बालश्रम कानून की खुलेआम धज्जियां
कैराना।गरीबी और पेट की आग बुझाने के लिए मासूमों के ऊपर जबरन लादा जा रहा जिम्मेदारियों का बोझ वैसे तो हमारे देश में बालश्रम अपराध माना गया है और बच्चों से मजदूरी कराने वालों को सख्त सजा का प्रावधान भी हैं।लेकिन इससे इधर जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही हैं,जो हमारी सरकारों के साथ ही संवेदनशील व सभ्य समाज का दम भरने वालों के मुंह पर जोरदार तमाचा साबित हो रहा हैं।जी हां शादी समारोहों का सीजन चल रहा हैं, लेकिन क्या हमने कभी बारातियों के पीछे सर पर भारी भरकम रोडलाइट रखे चल रहे उन मासूमों को देखा हैं,जो आज के इस भौतिकवादी और महंगाई से त्रस्त जीवन के भंवर में बचपन से ही उलझ जाते हैं।शायद यही वजह है कि इन बच्चों के निश्छल और किलकारियों से भरे बचपन की हंसी छिन गई है और मासूम बचपन कहीं खो गया है।तो वहीं बाजारों में दुकानों पर छोटे-छोटे बच्चें बैठकर दुकान चलाते हैं और नगर के होटलों पर भी छोटे-छोटे बच्चें कार्य कर रहे हैं।वहीं इससे मिलती जुलती तस्वीर एक और है जहां नगर के बड़े बड़े रसूखदार अपने प्रतिष्ठानों में नाम मात्र की पगार देकर नाबालिग बच्चों को काम पर रखकर उनका बचपना छीन रहे हैं।नगर के सैकड़ों प्रतिष्ठानों और दुकानों में नाबालिग मजदूरी कर रहे हैं।जरा सोचिए कौन से मां -बाप चाहते होंगे कि उनका बच्चा स्कूल जाने की वजाय मजदूरी करे।लेकिन गरीबी और महंगाई के चलते जिम्मेवारियों व अपेक्षाओं के बोझ तले दबकर ये मासूम अपना जीवन नहीं जी पा रहे हैं।गरीबी के शिकार बच्चे अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए होटलों,दुकानों के अलावा अन्य काम करने में ही अपना हंसता खेलता बचपन गवां रहे है।वहीं नए शिक्षा सत्र की शुरुआत होते ही बच्चों को स्कूल भेजने के उद्देश्य से जगह-जगह जागरूकता रैलियां निकाली जाती हैं साथ ही स्कूलों में बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य पर करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं।सरकारी विद्यालयों में पढऩे वाले बच्चों को मुफ्त किताबें,ड्रेस,स्कूल बैग और मध्यांह भोजन की व्यवस्था भी की गई हैं।लेकिन यहां भी वास्तविकता कुछ और ही हैं।बच्चों को दी जाने वाली किताबों, कपड़ों से लेकर मध्यांह भोजन तक में चल रही कमीशनखोरी और धांधली किसी से छुपी नहीं हैं।सवाल तो यह है कि पेन कागज पकडऩे वाले हाथों और कंधों में जिम्मेदारियों का भारी भरकम बोझ मासूमों को उनका बचपन कब मिलेगा या फिर ऐसी ही होगी देश के भविष्य की तस्वीर है।घर की रोटी चलाने के लिए क्या करते हैं,शादी विवाह के सीजन में विवाह घर,गार्डन व होटल संचालकों द्वारा बाल मजदूरों को काम पर लगाया जाता हैं और गरीब तबके के बच्चों को भी अपने घर की रोटी की व्यवस्था के लिए विवाह घर,गार्डन व होटल में सभी प्रकार के काम करने पड़ते हैं।बच्चों को जिस उम्र में कापी और पेन होना चाहिए उस उम्र में उनके हाथ पर रुपयों का लालच देकर चाय पानी और नास्ता की ट्रै पकडा दी जाती है।इसके अलावा बच्चों से शादी विवाह में जूठे बर्तन आदि भी साफ कराए जाते हैं।
नहीं होती कार्रवाई
बाल श्रम कानून का पालन विभाग के अधिकारियों द्वारा नहीं किया जा रहा हैं।यहां पर काफी समय से इस तरह की कोई कार्रवाई नहीं की गई।जिससे लोगों में बच्चों से काम कराने में भय हो सके।वैसे तो हर वर्ष 14 नवम्बर को बाल दिवस में कार्यक्रमों को आयोजन कर सभी विभाग और स्कूलों में बड़ी-बड़ी ड़ीगें मारी जाती हैं,लेकिन हकीकत बिल्कुल ही उससे परे है और नगर के बड़े-बड़े रसूखदार जो कार्यक्रमों में जाकर डीगें मारते है,वहीं अपने दुकानों प्रतिष्ठानों में बाल मजदूरों को काम में लगाकर खुलेआम बाल श्रम कानून का मखौल उड़ा रहे है।