
विकास कुमार
ऊन चौसाना
लेख (रक्षाबंधन) विशेष
भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को मजबूती व प्रेम पूर्ण आधार देता है। इस पर्व का ऐतिहासिक, सामाजिक, धार्मिक और राष्टीय महत्व है। इसे श्रावण पूर्णिमा के दिन उत्साह पूर्वक मनाया जाता है। रक्षाबंधन पर्व का ऐतिहासिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और राष्ट्रीय महत्व है। यह भाई एवं बहन के भावनात्मक संबंधों का प्रतीक पर्व है। इस दिन बहन भाई की कलाई पर रेशम का धागा बांधती है तथा उसके दीर्घायु जीवन एवं सुरक्षा की कामना करती है। बहन के इस स्नेह बंधन से बंधकर भाई उसकी रक्षा के लिए कृत संकल्प होता है। राखी बांधना सिर्फ भाई-बहन के बीच का कार्यकलाप नहीं रह गया।
अब राखी देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, धर्म की रक्षा, हितों की रक्षा आदि के लिए भी बांधी जाने लगी है। विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ने इस पर्व पर बंग भंग के विरोध में जनजागरण किया था और इस पर्व को एकता और भाईचारे का प्रतीक बनाया था। प्रकृति की रक्षा के लिए वृक्षों को राखी बांधने की परंपरा भी शुरू हो चुकी है। हालांकि रक्षा सूत्र सम्मान और आस्था प्रकट करने के लिए भी बांधा जाता है।
रक्षाबंधन का महत्व आज के समय में इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि आज मूल्यों के क्षरण के कारण सामाजिकता सिमटती जा रही है और प्रेम व सम्मान की भावना में भी कमी आ रही है। यह पर्व आत्मीय बंधन को मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ हमारे भीतर सामाजिकता का विकास करता है। इतना ही नहीं यह त्योहार परिवार, समाज, देश और विश्व के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति हमारी जागरूकता भी बढ़ाता है। राखी पूर्णिमा को कजरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। लोग इस दिन ‘बागवती देवी’ की पूजा करते हैं। रक्षा बंधन को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे विष तारक यानी विष को नष्ट करने वाला, पुण्य प्रदायक यानी पुण्य देने वाला आदि।
पहले बहन की, स्त्री की सुरक्षा केवल घर की चारदीवारी के अंदर ही नहीं बल्कि हर स्थान पर की जाती थी लेकिन आज जब हम इंटरनेट के युग में प्रवेश कर गये हैं, तब संबंधों के मायने में भी परिवर्तन आने लगा है। अंधी प्रगति की दौड़ में पारिवारिक मान्यताएं, प्रथाएं, रीति-रिवाज, पर्व त्योहार की मान्यताओं में तेजी से परिवर्तन हो रहा है। मीडिया और भौतिकता के प्रभाव ने नैतिक मूल्यों की धज्जियां उड़ा कर रख दी हैं। जिस समाज में नैतिकता पर चोट हो, गिरावट हो वहां सबसे पहले महिलाएं ही प्रभावित होंगी।
आज महिला, बालिकाएं घर के बाहर, बसों में, रेल में, सड़क पर, विद्यालयों-महाविद्यालययों के कैम्पस में असुरक्षित हैं। यहां तक कि घर परिवार भी महिलाओं एवं बालिकाओं के लिए असुरक्षित है। रक्षाबंधन जैसा पर्व हमें एहसास दिलाता है कि हम उनकी रक्षा के लिए आगे आकर पहल करें। रक्षाबंधन के पर्व में परस्पर एक-दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना निहित है।